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या॒तं छ॑र्दि॒ष्पा उ॒त न॑: पर॒स्पा भू॒तं ज॑ग॒त्पा उ॒त न॑स्तनू॒पा । व॒र्तिस्तो॒काय॒ तन॑याय यातम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yātaṁ chardiṣpā uta naḥ paraspā bhūtaṁ jagatpā uta nas tanūpā | vartis tokāya tanayāya yātam ||

पद पाठ

या॒तम् । छ॒र्दिः॒ऽपौ । उ॒त । नः॒ । प॒रः॒ऽपाः । भू॒तम् । ज॒ग॒त्ऽपौ । उ॒त । नः॒ । त॒नू॒ऽपा । व॒र्तिः । तो॒काय॑ । तन॑याय । या॒त॒म् ॥ ८.९.११

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:9» मन्त्र:11 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:32» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:11


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शिव शंकर शर्मा

राजकर्तव्य कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे पुण्यवान् राजा और अमात्यवर्ग ! आप दोनों (छर्दिष्पा) गृहरक्षक के समान (यातम्) हम लोगों की ओर जाएँ अर्थात् प्रजाओं के गृहों की रक्षा के लिये आप बाहर इधर-उधर जाया करें। (उत+नः) और हम प्रजाओं के (परस्पा) अतिशय पालक (भूतम्) होवें, यद्वा हम लोगों को शत्रुओं से बचानेवाले होवें और (जगत्पा) हमारे जङ्गम गौ आदि पदार्थों के पालक आप होवें (उत+नः) तथा हमारे (तनूपा) शरीरों और बच्चों के रक्षक होवें। हे अश्विद्वय ! इन सब कार्य्यों के लिये (तोकाय) हमारे पुत्र के तथा (तनयाय) पौत्र के (वर्तिः) गृह में (यातम्) जाया करें ॥११॥
भावार्थभाषाः - राजा प्रजाओं की सर्व वस्तुओं की रक्षा करें और करावें ॥११॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे व्यापकशक्तिवाले ! (नः) हमारे (छर्दिष्पौ, यातम्) गृहों की रक्षा करनेवाले होकर आवें (उत) और (परस्पौ, भूतम्) शत्रु से बचानेवाले हों (जगत्पौ) संसारपालक आप (नः, तनूपौ) हमारे शरीर के रक्षक हों (तोकाय) पुत्र के (तनयाय) पौत्र के (वर्तिः) घर को (यातम्) आएँ ॥११॥
भावार्थभाषाः - हे बलवान् सबकी रक्षा करनेवाले सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्ष ! आप शत्रुओं से हमारी और हमारे गृह=अन्तःपुर की रक्षा करें और हमारे पुत्र-पौत्रों की भी रक्षा करते हुए उन्हें विद्यादान द्वारा योग्य बनावें ॥११॥
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शिव शंकर शर्मा

राजकर्त्तव्यमाह।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अश्विनौ ! युवाम्। छर्दिष्पा=छर्दिष्पौ=छर्दिर्गृहं तस्य पालकौ इव। यातम्। तम्। उत नोऽस्माकम्। परस्पा=परस्पौ=परमतिशयेन पालकौ। भूतम्=भवतम्। पारस्करादित्वात्सुट्। यद्वा। परस्पौ=शत्रुभ्यः पालकौ। पुनः। जगत्पा=जगतां जङ्गमानां पदार्थानां पालकौ भवतम्। उत तनूपा=शरीरपालकौ भवतम्। हे अश्विनौ। एतत्सर्वार्थम्। मम तोकाय=तोकस्य=पुत्रस्य। तनयाय=तनयस्य पौत्रस्य च। वर्त्तिर्गृहम्। यातम्=गच्छतम् ॥११॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे अश्विनौ ! (नः) अस्माकम् (छर्दिष्पौ, यातम्) गृहरक्षकौ सन्तौ आयातम् (उत) अथ च (परस्पौ, भूतम्) शत्रुभ्यो रक्षकौ भवतम् (जगत्पौ) जगत्पालकौ भवन्तौ (नः, तनूपौ) अस्माकम् शरीरपालकौ स्यातम् (तोकाय) पुत्रस्य (तनयाय) पौत्रस्य च (वर्तिः) गृहम् (यातम्) आयातम् ॥११॥